आलेख - प्रकाश पण्ड्या
निस्पृह, निष्काम, निर्भान्त, निर्भार, निर्भय अलौकिक विलक्षणताओं से युक्त व्यक्तित्व का सानिध्य और सामीप्य पाकर मन, बुद्धि, चित्त तीनों ही बोधातीत, वर्णनातीत और शब्दातीत हो जाते है। विलक्षण व्यक्तित्व का प्रत्यक्ष दर्शन लोक यात्रा में भी अलौकिक अनिर्वचनीय आनन्द की प्राप्ति का दुर्लभ सुख प्रदान करता है। मनोज्ञ मुनि श्री 108 श्री पुलक सागर जी महाराज की अलौकिक विलक्षणता हिन्दी साहित्य के लब्ध प्रतििष्ठत रचनाकार कविवर अज्ञेय के प्रतिनिधि रचना नदी के द्वीप को मन: चक्षु के समक्ष साकार करती है। पूज्य मुनि श्री पुलक सागर जी महाराज अध्यात्म के महासमुद्र का अद्वितीय द्वीप है। एक ऐसा द्वीप जिसका आश्रय पाकर महासमुद्र का क्लान्त और श्रान्त यात्री अद्भूत और अलौकिक आनन्द से साक्षात पाकर कृतार्थ हो जाता है स्वयं को धन्य अनुभूत कर उस शरण स्थली पर चिर विश्राम का मनोरथ सिद्ध करने में जुट जाता है। पुज्य मुनि श्री की असाधारण विलक्षणताएं सामान्य और विशिष्ट आम और खास आिस्तक और नािस्तक आबाल वृद्ध सभी को आकर्षित प्रकाशित और प्रभावित करती है।
पारस का दिव्य ज्ञान स्पर्श, अनन्त और अशेष हर्ष
लौकिक जीवन में पारस नामकरण के साथ संसार यात्रा आरंभ करने वाले महामना मुनि श्री पुलक सागर जी महाराज का बाल्यकाल, तरूणाई और कालान्तर में सन्यस्थ जीवन में प्रवेश की गाथा अपने आप में विलक्षण और अनन्य है। पारस से पुलक सागर तक की विकास और आत्म विकास की यात्रा अपने आप में किसी ग्रन्थ से कम नहीं है। 11 मई 1970 को धर्म निष्ठ समाज सेवी एवं श्रावक श्रेष्ठ भीकमचन्द जी जैन के यहां वात्सल्य एवं ममता की साक्षात प्रतिमूर्ति नारी रत्न श्रीमती गोपी बाई जैन की कोख से जन्मे पारस का दिव्य ज्ञान स्पर्श प्रत्येक मुमुक्षु को अनन्त और अशेष हर्ष प्रदान करने वाला है। स्नातक स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के बाद मुनि श्री ने 27 जनवरी, 1993 को गृहस्थ जीवन का त्याग किया। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के पावन सानिध्य में मिढयाजी तीर्थ जबलपुर मध्यप्रदेश में ब्रह्मचर्य व्रत पालन का शुभारंभ किया। ठीक एक वर्ष पश्चात आपने ग्वालीयर स्थित गोपाचल पर्वत के आंचल में ऐलक दीक्षा ग्रहण की। 11 दिसम्बर, 1995 को कानपुर क्षेत्र के आनन्दपुरी में आपश्री का मुनि दीक्षा महोत्सव सम्पन्न हुआ। वात्सल्य दिवाकर आचार्य श्री पुष्पदन्त सागर जी महाराज आपके दीक्षा गुरु रहे है। लौकिक यात्रा के इस अविस्मरणीय पल में आप पारस से पुलक सागर महाराज के रूप में समष्टि के समक्ष अवतरित हुए। गुरुवर की असीम और अतुलित कृपा आप पर निर्निमेष बरसती रही है।
ज्ञान और वैराग्य के जीवन्त महापुराण, पीडितों का करे परिञाण
मनोज्ञमुनि श्री 108 पुलक सागर महाराज ज्ञान और वैराग्य के जीवन्त महापुराण है। निर्विकारी, निराकुल और नि:स्पृही अनासक्त महायोगी मुनि श्री ज्ञान का कुबेर कोष है तो वैराग्य का ऐसा महाग्रन्थ जिसके हर पृष्ठ पर उत्कीर्ण एक एक अक्षर जीवनोद्धार और जन्मोद्धार का महामंत्र है। अध्यात्म की गहरी साधना में डूबे मुनि श्री पीडितों का परित्राण करने वाले है। अलौकिक शालीनता, सर्वहीत साधक, क्षमाशीलता, समता और निर्भयता के साथ आप जगतवासियों को मनुष्य होने का अर्थ और मर्म समझाने के लिए अहर्निश साधनारत है।
वाणी में गंगा, लेखनी में कालिन्दी का प्रवाह
मनोज्ञ मुनि श्री पुलक सागर जी महाराज की अनुभवीय परख क्षमता, ज्ञान की अतल गहराई और आत्मानुभुति आपकी वाणी और लेखनी में साक्षात परिलक्षित होती है। ओज, प्रसाद और माधुर्य से परिपूर्ण आपकी वाणी से जब शब्द झरते है तो मोक्ष प्रदाियनी, अघनाशिनी, जीवन उद्धारिणी मॉ गंगा के निर्मल और पावन धारा मन बुद्धि चित्त को भीगो रहे से अनुभव होते है। आपके श्री मुख से झरने वाला एक एक शब्द सूरसरी की पावनता का बोध कराता है। लेखनी में मां कालिन्दी का प्रवाह मन की मलीनता और चित्त की चंचलता को समाप्त कर देता है। आप श्री द्वारा रचित ग्रन्थ एवं साहित्य का पारायण, पठन एवं श्रवण जीवन को मनोमालिन्य मुक्त कर शुचिता पूर्ण मानवीयता से युक्त जीवन जीने का आधार देता है। धार्मिक सामाजिक एवं राष्ट्रीय चिन्तन से परिपूर्ण ग्रन्थों, पुस्तकों का सृजन आपके भीतर अविरल और निरन्तर प्रवाहित होने वाली चिन्तनशीलता की गंगा, अभिव्यक्ति की मुखरता की यमुना और सन्यस्थ साित्वकता की सरस्वती की ित्रवेणी के दर्शन कराता है।
लहलहाने लगी अध्यात्म की फसल
लघु काशी वागडवासियों की वर्षा की साध पूरी हुई। पूर्व जन्मों के पुण्य की फलश्रुति के रूप में मनोज्ञ मुनि श्री 108 पुलक सागर जी महाराज एवं मुनिसंघ का वर्षायोग बांसवाडा की धरती पर हो रहा है। इसी श्रृंखला में मुनि श्री के पावन सानिध्य में 26 जुलाई से 23 अगस्त तक ज्ञान गंगा महोत्सव का अनूठा एवं अपूर्व अनुष्ठान भी सम्पन्न हुआ। बांसवाडा का हृदय स्थल कहे जाने वाले उपाध्याय पार्क के सामने जवाहरपुल के निकट धर्मसभा स्थल जिसे पूज्य मुनि श्री ने वात्सल्य सभागार का शाश्वत नामकरण प्रदान किया, जिसमें प्रतिदिन मुनिवर के श्रीमुख से ज्ञान गंगा प्रवाहित हुई। एक माह तक मुनिश्री ने सामाजिक, पारिवारिक, राजनीतिक एवं वैश्विक हितों पर आधारित विषय वस्तु पर अपनी अमृत वाणी से लाखों धर्मानुरागियों का मार्ग प्रशस्त किया। मुनि श्री के अनुयािययों और भक्तों के साथ लाखों वागडवासियों की भगीरथ श्रद्धा साकार हुई। इसी के परिणाम स्वरूप ज्ञान गंगा स्वयं वागडवासियों के द्वार तक पहुंची। तीस दिनों तक श्री गुरु मुख से ज्ञान गंगा प्रवाहित हुई, जिससे वाग्वरांचल के अणुµअणु को अपनी दिव्यता से उपकृत कर यहां की उर्वर मिट्टी में अध्यात्म की ऐसी फसल तैयार की है, जिससे यहां के जनमन के खलिहान मानवीयता के गुणों से युक्त अन्न धन से भर जाएंगे और जन मानस को अक्षय फल की प्रािप्त होगी।