Thursday, August 27, 2009

अध्‍यात्‍म के महासमुद्र का अद्वितीय द्वीप

आलेख - प्रकाश पण्‍ड्या

निस्पृह, निष्काम, निर्भान्त, निर्भार, निर्भय अलौकिक विलक्षणताओं से युक्त व्यक्तित्व का सानिध्य और सामीप्य पाकर मन, बुद्धि, चित्त तीनों ही बोधातीत, वर्णनातीत और शब्दातीत हो जाते है। विलक्षण व्यक्तित्व का प्रत्यक्ष दर्शन लोक यात्रा में भी अलौकिक अनिर्वचनीय आनन्द की प्राप्ति का दुर्लभ सुख प्रदान करता है। मनोज्ञ मुनि श्री 108 श्री पुलक सागर जी महाराज की अलौकिक विलक्षणता हिन्दी साहित्य के लब्ध प्रतििष्ठत रचनाकार कविवर अज्ञेय के प्रतिनिधि रचना नदी के द्वीप को मन: चक्षु के समक्ष साकार करती है। पूज्य मुनि श्री पुलक सागर जी महाराज अध्यात्म के महासमुद्र का अद्वितीय द्वीप है। एक ऐसा द्वीप जिसका आश्रय पाकर महासमुद्र का क्लान्त और श्रान्त यात्री अद्भूत और अलौकिक आनन्द से साक्षात पाकर कृतार्थ हो जाता है स्वयं को धन्य अनुभूत कर उस शरण स्थली पर चिर विश्राम का मनोरथ सिद्ध करने में जुट जाता है। पुज्य मुनि श्री की असाधारण विलक्षणताएं सामान्य और विशिष्ट आम और खास आिस्तक और नािस्तक आबाल वृद्ध सभी को आकर्षित प्रकाशित और प्रभावित करती है।

पारस का दिव्य ज्ञान स्पर्श, अनन्त और अशेष हर्ष

लौकिक जीवन में पारस नामकरण के साथ संसार यात्रा आरंभ करने वाले महामना मुनि श्री पुलक सागर जी महाराज का बाल्यकाल, तरूणाई और कालान्तर में सन्यस्थ जीवन में प्रवेश की गाथा अपने आप में विलक्षण और अनन्य है। पारस से पुलक सागर तक की विकास और आत्म विकास की यात्रा अपने आप में किसी ग्रन्थ से कम नहीं है। 11 मई 1970 को धर्म निष्ठ समाज सेवी एवं श्रावक श्रेष्ठ भीकमचन्द जी जैन के यहां वात्सल्य एवं ममता की साक्षात प्रतिमूर्ति नारी रत्न श्रीमती गोपी बाई जैन की कोख से जन्मे पारस का दिव्य ज्ञान स्पर्श प्रत्येक मुमुक्षु को अनन्त और अशेष हर्ष प्रदान करने वाला है। स्नातक स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के बाद मुनि श्री ने 27 जनवरी, 1993 को गृहस्थ जीवन का त्याग किया। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के पावन सानिध्‍य में मिढयाजी तीर्थ जबलपुर मध्यप्रदेश में ब्रह्मचर्य व्रत पालन का शुभारंभ किया। ठीक एक वर्ष पश्‍चात आपने ग्वालीयर स्थित गोपाचल पर्वत के आंचल में ऐलक दीक्षा ग्रहण की। 11 दिसम्बर, 1995 को कानपुर क्षेत्र के आनन्दपुरी में आपश्री का मुनि दीक्षा महोत्सव सम्पन्‍न हुआ। वात्सल्य दिवाकर आचार्य श्री पुष्पदन्त सागर जी महाराज आपके दीक्षा गुरु रहे है। लौकिक यात्रा के इस अविस्मरणीय पल में आप पारस से पुलक सागर महाराज के रूप में समष्टि के समक्ष अवतरित हुए। गुरुवर की असीम और अतुलित कृपा आप पर निर्निमेष बरसती रही है।

ज्ञान और वैराग्य के जीवन्त महापुराण, पीडितों का करे परिञाण

मनोज्ञमुनि श्री 108 पुलक सागर महाराज ज्ञान और वैराग्य के जीवन्त महापुराण है। निर्विकारी, निराकुल और नि:स्पृही अनासक्त महायोगी मुनि श्री ज्ञान का कुबेर कोष है तो वैराग्य का ऐसा महाग्रन्थ जिसके हर पृष्ठ पर उत्कीर्ण एक एक अक्षर जीवनोद्धार और जन्मोद्धार का महामंत्र है। अध्यात्म की गहरी साधना में डूबे मुनि श्री पीडितों का परित्राण करने वाले है। अलौकिक शालीनता, सर्वहीत साधक, क्षमाशीलता, समता और निर्भयता के साथ आप जगतवासियों को मनुष्य होने का अर्थ और मर्म समझाने के लिए अहर्निश साधनारत है।

वाणी में गंगा, लेखनी में कालिन्दी का प्रवाह

मनोज्ञ मुनि श्री पुलक सागर जी महाराज की अनुभवीय परख क्षमता, ज्ञान की अतल गहराई और आत्मानुभुति आपकी वाणी और लेखनी में साक्षात परिलक्षित होती है। ओज, प्रसाद और माधुर्य से परिपूर्ण आपकी वाणी से जब शब्द झरते है तो मोक्ष प्रदाियनी, अघनाशिनी, जीवन उद्धारिणी मॉ गंगा के निर्मल और पावन धारा मन बुद्धि चित्त को भीगो रहे से अनुभव होते है। आपके श्री मुख से झरने वाला एक एक शब्द सूरसरी की पावनता का बोध कराता है। लेखनी में मां कालिन्दी का प्रवाह मन की मलीनता और चित्त की चंचलता को समाप्त कर देता है। आप श्री द्वारा रचित ग्रन्थ एवं साहित्य का पारायण, पठन एवं श्रवण जीवन को मनोमालिन्य मुक्त कर शुचिता पूर्ण मानवीयता से युक्त जीवन जीने का आधार देता है। धार्मिक सामाजिक एवं राष्ट्रीय चिन्तन से परिपूर्ण ग्रन्थों, पुस्तकों का सृजन आपके भीतर अविरल और निरन्तर प्रवाहित होने वाली चिन्तनशीलता की गंगा, अभिव्यक्ति की मुखरता की यमुना और सन्यस्थ साित्वकता की सरस्वती की ित्रवेणी के दर्शन कराता है।

लहलहाने लगी अध्यात्म की फसल

लघु काशी वागडवासियों की वर्षा की साध पूरी हुई। पूर्व जन्मों के पुण्य की फलश्रुति के रूप में मनोज्ञ मुनि श्री 108 पुलक सागर जी महाराज एवं मुनिसंघ का वर्षायोग बांसवाडा की धरती पर हो रहा है। इसी श्रृंखला में मुनि श्री के पावन सानिध्य में 26 जुलाई से 23 अगस्त तक ज्ञान गंगा महोत्सव का अनूठा एवं अपूर्व अनुष्ठान भी सम्पन्‍न हुआ। बांसवाडा का हृदय स्थल कहे जाने वाले उपाध्याय पार्क के सामने जवाहरपुल के निकट धर्मसभा स्थल जिसे पूज्य मुनि श्री ने वात्सल्य सभागार का शाश्‍वत नामकरण प्रदान किया, जिसमें प्रतिदिन मुनिवर के श्रीमुख से ज्ञान गंगा प्रवाहित हुई। एक माह तक मुनिश्री ने सामाजिक, पारिवारिक, राजनीतिक एवं वैश्विक हितों पर आधारित विषय वस्तु पर अपनी अमृत वाणी से लाखों धर्मानुरागियों का मार्ग प्रशस्त किया। मुनि श्री के अनुयािययों और भक्तों के साथ लाखों वागडवासियों की भगीरथ श्रद्धा साकार हुई। इसी के परिणाम स्वरूप ज्ञान गंगा स्वयं वागडवासियों के द्वार तक पहुंची। तीस दिनों तक श्री गुरु मुख से ज्ञान गंगा प्रवाहित हुई, जिससे वाग्वरांचल के अणुµअणु को अपनी दिव्यता से उपकृत कर यहां की उर्वर मिट्टी में अध्यात्म की ऐसी फसल तैयार की है, जिससे यहां के जनमन के खलिहान मानवीयता के गुणों से युक्त अन्‍न धन से भर जाएंगे और जन मानस को अक्षय फल की प्रािप्त होगी।

अहंकार समस्‍या, समर्पण समाधान - मुनि पुलकसागर

दशलक्षण महापर्व अन्तर्गत उत्तम मार्दव दिवस पर वात्सल्य धाम सभागार में हुए प्रखर वक्ता विख्‍यात चिन्‍तक एवं मनोज्ञ मुनि श्री पुलक सागर महाराज की नित्‍य प्रवचन माला में मुनि श्री ने अहंकार को जीवन की सबसे बडी समस्या निरूपित करते हुए समर्पण को इसका अचूक और सार्वकालिक समाधान बताया। मुनि श्री ने कहा कि समर्पण से जीवन स्वर्ग बन जाता है। मुनि श्री ने साधना में भी संवेदनाओं को विस्‍मृत न करने की आवश्यकताओं पर बल देते हुए कहा कि व्यक्ति यदि जीवन में विनम्रता को अपना ले तो वह सबकी आंखों का तारा बन जाता है। मुनि श्री ने अहंकार विसर्जन पर बल दिया और कहा कि भक्त और भगवान के मध्य केवल अहंकार का ही परदा है जिस दिन यह परदा गिर जाएगा उस दिन आत्मा से परमात्मा का मिलन सहज ही हो जाएगा। मुनि श्री ने एक कंगाल और राजा द्वारा उसे मंत्री बनाए जाने की कथा के माध्यम से श्रावक श्राविकाओं तथा शिविरार्थियों का आह्वान किया कि वे जीवन में सदैव अहंकार मुक्त रहने के लिए दो बातों का ध्यान रखे। अपने अतीत और ओकाद को कभी नहीं भुले। पदार्थ छोडा, अहंकार ओढा मुनि श्री ने जीवन में अहंकार को सभी समस्याओं की जड बताते हुए कहा कि अभिमान के कारण ही व्यक्ति न केवल संसार के लोगों से अपितु परमात्मा से भी दूर हो जाता है। मुनि श्री ने अहंकार के प्रकार रेखांकित करते हुए कहा कि केवल जोडने का ही अहंकार नहीं होता अपितु छोडने का भी अहंकार हमारे मन मस्तिष्‍क पर सवार हो जाता है। मुनि श्री ने कहा कि कोई साधु पदार्थ तो छोड देता है लेकिन बदले में अहंकार ओढ लेता है। उसे अपने तप, त्याग, संयम पर अभिमान होने लगता है। मुनि श्री ने कहा कि सच्चा साधु वही है जिसे कभी अपने त्याग और ज्ञान का अहंकार न हो। यदि संत में अहंकार आ जाता है तो वह श्रावक से भी बदतर है। मुनि श्री ने कहा कि धन का अहंकार तो दिखता है लेकिन त्याग का अहंकार दिखता नहीं है। मुनि श्री ने कहा कि दौलत आ जाए तो बडी बात नहीं लेकिन दौलत आने के बाद विनम्रता बनी रहे वह बडी बात है। बुलंदियां छुना महत्वपूर्ण नहीं है बुलन्दियों पर बने रहना बडा मुश्किल है। मुनि श्री ने कहा कि दिगम्‍बर संत कभी श्राप नहीं देते जो श्राप दे वह संत नहीं है। मुनि श्री ने जीवन में विनम्रता का सदैव साथ और साया होने की अभिलाषा व्यक्त करते हुए कहा ए खुदा मुझे इतनी ऊचाई न दे जहां से मुझे इंसान दिखाई न दे। मुनि श्री ने कहा कि उत्तम मार्दव धर्म यही कहता है कि हम विनम्र बने रहे और अहंकार का विसर्जन करे, जिसका उपकार है उसके प्रति एहसान मंद रहे। उन्होंने कहा कि उत्तम मार्दव दिवस मैं को मिटाने का दिन है। निंदा, पराजय से होती है प्रकट यदि किसी व्यक्ति की अधिकतम निंदा होती है तो इसका अर्थ है निंदक उसके किसी गुण से बुरी तरह परास्त है। मुनि श्री ने कहा कि जीवन में ईर्ष्या किसी को जितना बर्बाद करती है उतना पराभव कोई नहीं करता। मुनि श्री ने कहा कि निंदा वही करते है तो पराजित है। हारा हुआ व्यक्ति हमे भीतर से उबलता रहता है। उन्होंने कहा कि सबके उद्धार का भाव रखना ही संतत्व है जबकि आगे बढने वाले के प्रति ईर्ष्या का भाव दुष्टता और कुटीलता का परिचायक है। शाख से टुटे हुए फू ल ने कहा अच्छा होना भी बुरी बात है जमाने में। पंक्तियां सुनाकर मुनि श्रीने जीवन में श्रेष्ठता को पाने के जोखिम भी गिनाए । मुनि श्री ने कहा परीक्षा अच्छे और सच्चे की होती है। हाथ में जब कांच अथवा कोयला हो तो न तो इसे कोई संदेह की दृष्टि से देखता है न इसकी परीक्षा करना चाहता है। इसके विपरित यदि सोना और हीरा आ जाए तो सौ तरह से इसकी परीक्षा होती है। असली है या नकली का संशय मन में असंख्य सवाल खडे करता है इसलिए यदि जीवन में हमारी भी परीक्षा होने लगे तो इसका अर्थ यही है कि कही न कही हमारे भीतर हीरे और सोने की महिमा समाहित है। भारत का केकडा मुनि श्री ने अधकितम लोगों में ईर्ष्या भाव होने का तथ्य उद्घाटति करते हुए विश्‍व केकडा सम्मेलन का प्रसंग सुनाया और परिहास के साथ इस सत्य को भी स्पष्ट किया कि टांग खिंचाई में यहां कोई किसी से पीछे नहीं। विश्‍व भर से केकडे विमान के जरिये आयोजन स्थल पहुंचाए जा रहे थे। अन्य सभी देशों के केकडों के डोलते के तो ढक्कन लगे हुए थे लेकनि भारतीय केकडों वाले डोलचे का ढक्कन खुला था पायलट सहित अन्य लोगों ने संभावित खतरे से अवगत कराया और ढक्कन बंद करने का मशवीरा दिया तो केकडों के साथ जा रहे व्यक्ति ने कहा चिंता न करे ये केकडे किसी भी अन्य केकडे को उपर नहीं चढने देंगे जैसे ही आगे बढेगा उसकी टांग खीचकर नीचे गिरा देगा। यही तो जीवन की सबसे बडी कमजोरी है कि हमसे कोई आगे न बढ जाए और अगर बढ रहा है तो अपनी ताकत उससे आगे बढने में नहीं उसकी ढांग खीचने में उपयोग में लाई जाए। श्री पुलक सागर महाराज ने अफवाहों पर भी अपनी वाणी को मुखरता दी और कहा कि अफवाहे हमेशा हवा पर सवार होकर आती है लोग जितनी सच्चाई पर भरोसा नहीं करते उससे ज्यादा विश्‍वास अफवाहों पर करते है। अफवाहे दो दिलों में दूरियां बढाती है और मन खट्टा कर देती है।